कुछ आसू मेरी आँखों से छलके तो क्या
ये आसमान भी तो रोता है
फर्क सिर्फ इतना सा है मैं चुप क रोती हु
ये रोता है तोह सब इसको देखते है
कोई इसकी मदहोशी में गुम हो जाता है
तो कोई इससे चुप कर बैठ जाता है
गम तो दोनों का एक सा है
वह भी दर्द के भर से बरष जाता है
मैं भी दर्द के अम्बर से छलक जाती हु
दोनों के ना जाने कितने अश्क बहते हैं
एक तनहा चुप चाप बंद कमरों के अँधेरे में रोता हैं
तो दूसरा खुली इस धरती के दमन में
फर्क सिर्फ इतना सा है धरती का आँचल उसके आसू पोछती हैं
और मेरे ये आसू रात के अँधेरे में गुम हो जाता है
पर ना जाने क्यों लोग दोनों के दर्द से अनजान हैं
मेरे दर्द को लोग मेरी गलती कहते है
उसके दर्द से लोग अपनी मुश्किल हल करते हैं